फ़ूलों की सुगंध,
चाँद-तारों की रोशनी,
प्रकृति के रँग और गीत,
सभी मेरे जज्बात के कत्ल से
परिचित हैं--------
सिर्फ़
तुम नहीं----
मेरा मासूम दिल
दूरी का स्थायी कफ़न
ओढकर
दर्द के मरुस्थल में
गहरे तक दफ़न है,
और
मेरी हर साँस
आर्तनाद कर रही है----
याद है,
मुझे आज भी याद है,
वो दर्दनाक पल,
जब मेरा मासूम दिल
तुम्हारी मोहब्बत
न पाकर
एक प्यासे पँक्षी की मानिन्द
जमीन पर गिरा
और मुझे निहारकर
मर गया-----
मुझे लगा,
उस मासूम दिल के
कत्ल में
मेरा भी हाथ है शायद------
------------------- गोपाल कृष्ण शुक्ल
वाह
ReplyDeleteमुझे लगा कि कत्ल में मेरा भी हाथ है शायद.............
बहुत खूब