रंगीन रातों में
एक हसीन ख्वाब।।
जैसे हो प्रणय गीत
भीनी सी मुस्कुराहट
जैसे जलती मशाल
निगारीं है रिहाइश,
हुस्न है निसाब,
ऐसा है तेरा शबाब।।
आँखों में काजल
पेशानी में पसीना
बवन्डरों का मौसम
बहारों का महीना,
चेहरा चश्म-ए-आफ़्ताब,
ऐसाहै तेरा शबाब।।
चहचहाते पँछी
गुलजार गुलिस्ताँ
महकती घटायें
हसीन बागबाँ,
छाई रंगीनिये-शराब,
ऐसा है तेरा शबाब।।
रंगीन रातों में
एक हसीन ख्वाब।।
------------------------- गोपाल कृष्ण शुक्ल
निगारीं = श्रंगारित
निसाब = सरमाया
चश्म-ए-आफ़्ताब = सूरज
रंगीनिये-शराब = शराब की मस्ती
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