खुद तजुर्बा कर लूँ और दुनिया को बताऊँ मैं
इश्क को याद रखूँ और खुद को भूल जाऊँ मैं।
कोई तो खास बात है इस धोखेबाज इश्क में
जानते-समझते हुए भी इतने धोखे खाऊँ मैं।
जाने कहाँ गया वो वक्त जब था दुनियावी
अब खुद को अपने इश्क के करीब पाऊँ मैं।
वो कितनी खुशगवार हवा का झोंका सा था
दिल कहता यही, अब उसे सीने से लगाऊँ मैं।
जब दुआ को आसमाँ की तरफ़ हाथ उठता है
इश्क ही जेहन में रहे दुआ को भूल जाऊँ मैं।
------------------------------- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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