कब तक..... कब तक.....
कायरता ओढे रहोगे.......
जागो....
जागो मेरे भाई.....
सभी कहते हैं मुझसे
पर मैं.....
मैं चल रहा हूँ, आगे बढ रहा हूँ
दिशा ग्यान के बिना
आगे बढना मान बैठा प्रगति की निशानी
इस लिये छोड अपने मूल तत्व को
कर रहा प्रगति की गुलामी
मैं, कट रहा हूँ, मर रहा हूँ
पर आगे बढ रहा हूँ
हो जाये चाहे नष्ट मेरी सभ्यता
हो जाये भ्रष्ट चाहे मेरी मनुजता
मैं भीरु हूँ
मै कायर हूँ
तुम यही समझ लो
यही है मेरी निशानी......
............................. गोपाल कृष्ण शुक्ल
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