मोहताज नही है वो
और न ही
मैं हूँ मोहताज,
न ही है कोई अवरोध,
जो बीच में आये
हम दोनो के आस-पास।
बात दिल की दिल से
जब-जब भी कही
खनकती हुई संगीत सी
हवाओं में लहराकर
सरगम सा सँदेश बनी।
मूक भाषा में ही हम
बात करें अपने मीत से
जो न जाने
प्रीत के सिवा
और कुछ भी।
हर द्वेष से परे
एक ही जबान.
एक ही पैगाम,
प्यार का पैगाम।
प्यार का पैगाम।।
............................ गोपाल कृष्ण शुक्ल
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