Thursday, May 3, 2012

{ १५० } मोहब्बत के रंग




इस दिल को लोग एक जख्म रोज नया देते हैं
क्यों लोग मुझे मोहब्बत के लिये सजा देते हैं।

जुर्म है ? आशिक से मोहब्बत निबाह करना
मिले सजा, हम तो मोहब्बत की दुआ देते हैं।

कितने मस्ताने है मोहब्बते के ये सुहाने सपने
ज़िन्दगी में भरते रंग, नया लुत्फ़ सजा देते हैं।

आह ! ये बारिश का मौसम, ये हवा के झोंके
ये तो मोहब्बत के शोलों को और हवा देते हैं।

कभी बेरुखी, रुसवाई, तो कभी जुल्मो-सितम
ये मेरी मोहब्बत में एक नया रंग सजा देते हैं।

कितने ही रंगों से भरे पडे हैं इश्क के ये नग्मे
दिल में तरंग, मस्ती औ’ अरमान जगा देते हैं।


........................................ गोपाल कृष्ण शुक्ल


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