खुश-ज़िन्दगी की शुरुआत के लिये मौत जरूरी है
दर्दे-दिल, दर्देजाँ से निजात के लिये मौत जरूरी है।
ज़िन्दगी नाम है गुलशन में खिले सुर्ख गुलाबों का
साथी खारजारों से निजात के लिये मौत जरूरी है।
दर्द, कुंठा, घुटन, भरे इस कटघरे से बाहर निकल
आला हजरातों से मुलाकात के लिये मौत जरूरी है।
ऐ परवरदीगार ! तेरी इस कायनात की जीनतों में
पाने उस जन्नत की सौगात के लिये मौत जरूरी है।
हमारी यह साँस ही तो वजह-मर्ज और दर्दे-रूह है
जाना ये तबीब कि वफ़ात के लिये मौत जरूरी है।
.................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
तबीब = इलाज
वफ़ात = मौत
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