Sunday, April 15, 2012

{ १३२ } देश बेच डाला





भारत देश का गुणगान बेच डाला
"इन्होने" अपना ईमान बेच डाला।

जो हो गये शहीद इस देश के लिये
"इन्होने" उनका बलिदान बेच डाला।

कर्ज-भूख से आज मर रहा किसान
"इन्होने" खेत-खलिहान बेच डाला।

भारत देश था महापुरुषों की धरती
"इन्होने" उनका सम्मान बेच डाला।

सच्चाई की जुबाने हो गईं हैं बन्द
अरे सब कुछ तो शैतान बेच डाला।


................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल

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