हम मिलेगें या दूर-दूर ही रहेंगें, खुदा जाने
कैसी बदल जाये हवा कैसे बहेंगें, खुदा जाने।
कब किस तरह बदल जायें वक्त के ये तेवर
वक्त की इस मार को कैसे सहेंगें, खुदा जाने।
बह रहे अश्क ही अश्क, धुआँ उठता आँखों से
ये बरसते हुए बादल कैसे थमेंगें, खुदा जाने।
हो जाते हैं दिल टुकडे-टुकडे, हुस्न की मार से
क्या दौलते दिल हर राह यूँ लुटेंगे, खुदा जाने।
मुझसे दूर रह कर न तू खुश, न मुझे ही चैन
ये बिछडे हुए दो दिल कब मिलेंगें, खुदा जाने।
............................................ गोपाल कृष्ण शुक्ल
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