है बहुत दिनों की साजिश यह, नही बनी यह स्थिति अकस्मात
भारत की संस्कृति पर, नित्य ही हो रहा भीषणतम कुठाराघात।
हर युग में जयचन्दों के होने का जारी है आज तक सिलसिला
बस तोडो लोगों की देश-भक्ति और कुचल डालो उनके जज्बात।
संत समाज करता रहता हर क्षण प्राणी की कुशलता के प्रयास
दुराग्रही, देशद्रोही, सत्ता-लोलुप दे रहे संतों को जेलों की सौगात।
अभी कुछ नहीं बिगडा है अभी अपना लो अपने भारत की संस्कृति
चूक गये अगर वक्त तो फ़िर मलते रह जाओगे अपने खाली हाथ।
मानव से मिली संस्कृति को ठोकरों से क्या संस्कृति चुप रहेगी
न मिलेगा ठौर कहीं जब संस्कृति करेगी अपने प्रकोप की बरसात।
.................................................................. गोपाल कृष्ण शुक्ल
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