मँजिल है तेरी दूर, मुसाफ़िर,
मँजिल है तेरी दूर।
जाना है बहुत दूर, मुसाफ़िर।
मँजिल है तेरी दूर।।१।।
बहुत है लम्बा रास्ता
कदम हैं भारी-भारी
तन है चकनाचूर, मुसाफ़िर।
मँजिल है तेरी दूर।।२।।
पाप से भरी गठरी,
सिर पर लादे भारी,
फ़िर भी तू है मगरूर, मुसाफ़िर।
मँजिल है तेरी दूर।।३।।
मँजिल है तेरी दूर, मुसाफ़िर,
मँजिल है तेरी दूर।
................................ गोपाल कृष्ण शुक्ल
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