जीवन-पथ में हमने रंग बहुतेरे देखें हैं
कुछ उजले औ’ कुछ पीले-काले देखे हैं।
अब तक जितनी उम्र नही देखी
अनुभव उससे ज्यादा देखे है।
अपने इस सुघर नीलाकाश मे
कुछ काले-अँधियारे बादल देखे हैं।।
पंछी बन-बन कर आसमान में
हमने ऊंची-ऊंची उडान भरी है।
पर जब-जब भी हमने नीचे देखा
अपनी धरती पर कालिमा ही झरी है।।
वेदनायें अब क्रीत दासियाँ सी हो गईं हैं
भावनायें दर्द समेट बियावान में खो गईं हैं।
क्या करूँ, क्या न करूँ कुछ सूझता नही है
मार्ग में अंधकार घनघोर, कुछ बूझता नही है।।
अब आसरा है सिर्फ़ ईश का अपने
वे ही बुद्धि हमारी निर्मल करें।
मार्ग दिखलाया "जगन्नाथ" ने
जो, उसको कंटक विहीन करें।।
..................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
वाह बहुत खूब लिखा है आप ने ..आज सब कि यही पीड़ा है ..यही दर्द है .......
ReplyDeleteअंधरे मे सब रौशनी खोजते है .....
पर सब को मिलता वही अँधेरा है ....!!