इकरामे-ज़िन्दगी के सफ़र को तय मुझको ही तो करना है
मिले जख्म तो जीना है, साँस लेते हुए भी तो मरना है।
रह गई ख्वाहिश दिल में, न बने हम दिलबर किसी के
इस सजी महफ़िल में, तनहा मुझ ही को तो रहना है।
भरी है रंजोगम और पीर से ज़िन्दगी की गुजरी कहानी
मयस्सर नहीं लबों को हँसी पर हँसते हुए ही तो रहना है।
लफ़्ज़ है, इबारत है, जुबाँ भी है, पर कहना कुछ भी नहीं
हैं लब सिले, खामोश हूँ, चुप रहते हुए ही तो सहना है।
पर्वतों से भी बुलन्द हो जायें चाहे कफ़स की सब दीवारें
बेडी पाँवों मे, हाथों मे हथकडी मंजिल पाकर तो रहना है।
अपने ख्वाबों की मंजिल से भी आगे, अभी दूर है चलना
उजली चाँदनी या अमावस की रात, रस्ता तय तो करना है।
हर लम्हा लडता रहूँगा हर चुनौती जँग से इस यकीं के साथ
इकरामे-ज़िन्दगी के सफ़र को तय मुझको ही तो करना है।
................................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
इकरामे-ज़िन्दगी=भगवान की दी ज़िन्दगी
कफ़स=कारागार
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