Sunday, October 16, 2011

{ ५७ } तस्वीर का सहारा






अपने आँसुओं को रौ में कभी बहने न दिया है मैंने
दिल की बात खामोश लबों को कहने न दिया है मैंने|

जिंदगी की इस रहगुजर में कहीं तुम मिल ही जाओगे|
हर मुस्कुराते चहरे में तुमको ही तलाश किया है मैनें|

वो मंद-मंद मुस्कराहट, वो ज़रा सा छू लेने की चाहते
उन बीते पलों का अबतक बहुत इंतज़ार किया है मैंने|

तुमने तो दिल से जुदा कर भुला देने की कसम खाई है
तुम्हारी एक तस्वीर के सहारे जीस्त को जिया है मैंने|

मेरी ये ज़िंदगी जाने किस-किस दौर से गुजर चुकी है
पर आँखों में अश्क और होठों से मुस्कुरा दिया है मैंने|


................................................................. गोपाल कृष्ण शुक्ल




2 comments:

  1. Bandhu bahut khub...

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  2. वाह... काफी अच्छा लिखते हो अाप

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