ये कैसा बियाबान है वो नज़ारे कहाँ गए
वो गुलशन कहाँ हैं, वो सितारे कहाँ गए|
उड़ - उड़ के बैठ चुकी है गर्द भी राह की
दोस्तों के काफिलों के हरकारे कहाँ गए|
छाया हर तरफ अमावस का अँधियारा है
उजली चाँदनी रातों के सितारे कहाँ गए|
नजर नहीं आती अब कहीं यारों की सूरते
वो बातों, वो मुलाकातों के नज़ारे कहाँ गए|
वो चांदनी-सूरज, दिलों का प्यार नहीं रहा
शब्द केवल शेष हैं, अर्थ बेचारे कहाँ गए|
.......................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
Bahut hi sundar aur sahaj shabdon me aapne jeevan ka sach vyakt kar diya.
ReplyDeleteMy Blog: Life is Just a Life
My Blog: My Clicks
.
बहुत खूब भैया, बहुत हि उम्दा!
ReplyDelete