गाँधी तुम तो कहते थे
कि भारत में फ़िर से
राम-राज्य स्थापित करेंगे..?
क्या यही राम-राज्य है....?
गाँधी कहाँ है तुम्हारी लाठी...?
शायद,
उसी को टेक कर ही
चल रही है बिगडी दिमाग वाली
भ्रष्टाचारी, निरंकुश, रक्त-पिपासु,
संवेदनहीन, डगमाती सत्ता ।
गाँधी कहाँ है तुम्हारी चप्पल...?
शायद,
सत्ताधीशों के
कठोर हाथों द्वारा
अब गरीबों की चाँद गंजी
करने के काम आ रही है ।
गाँधी कहाँ है तुम्हारी घडी.....?
शायद वो भी,
विशिष्टता को खोये हुए
भारत देश की नब्ज की तरह
कहीं पर बन्द पडी हुई है ।
गाँधी कहाँ है तुम्हारे तीन बन्दर....?
हाँ ! सिर्फ़ वो ही,
आज भी भारत को धरातल मे
ढकेलने के कार्य मे सलग्न है,
सिर्फ़ वो ही,
भारत की जनता को अक्षम
बनाने के लिये आज भी
निरन्तन अपना उपदेश दे रहे है---
" देखो मत ! सुनो मत ! बोलो मत ! "
वाह गाँधी, तुम तो चले गये
पर प्रतिबिंबों के द्वारा
भारत को रसातल मे
पहुंचाने से नही चूके ।।
................................................. गोपाल कृष्ण शुक्ल
बात मे दम है कविता है समाज के लिये जरुरी नये प्रतीको कॊ रचना की। रचना है शाश्वत मूल्यों के पुनर्लेखन का--
ReplyDeleteप्रतिबिम्बो को भाष्यानुसारी बनाने की जुगत तथा निरन्तर प्रयत्न का आह्वान है गांधी को केन्द्र कर।
Ye Sach hai Gopal ji .. aur ye sach ham tak itne sundar tareeke se pahunchane ke liye aabhaar.
ReplyDeleteगाँधी और भगत सिंह की फ़ाँसी
“आजाद” का अर्थ, गाँधी के अनुसार
ग़ाँधी की महान प्रतिज्ञायें
हे गांधी!
ReplyDeleteकहाँ है आपकी लंगोटी?
शायद वही,
आपके छद्म अनुयाईयों द्वारा
निचोड़ कर,
चूस लिए जाने के बाद भी
आशावादी रह कर,
राम राज्य की बाट तकती
भूखी नंगी
हिंद की रियाया
के तन ढांकने के काम आये!!