जिन्दगी में जख्म ऐसे-ऐसे दिल में हुआ करते है,
रिसते रहते है जख्म दिल फिर भी दुआ करते है |
गमों में घुटती साँसे, हरतरफ अँधेरा हवा बेरहम,
सब कुछ बदल गया, हम सिर्फ दर्द सहा करते हैं|
अपनी पलकों पर बैठाया है मैंने जिसको रात-दिन,
बेवजह मुझको अपनो में ही बदनाम किया करते है|
जिन्दगी ने दी तनहाई-रुसवाइयाँ बख्शीश में मुझे,
इस जहर-ए-जाम को हम हँस कर पिया करते है|
हर खुशी, तमन्ना मेरे गमे-दिल की पूरी हो न हो,
उजड़े हुए गुलिस्ताँ को महकने की दुआ करते है|
जज्बाए-इश्क, आरजूए-खुशी जीने की सदा देता है,
ऐ खुदा यह दुआ हो क़ुबूल हम यह ही दुआ करते है|
............................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
bahut sunder ,,,,aapki har kavita jaandar hai,,,,
ReplyDeleteहम आपकी और भी कविताएं पढना चाहतें है. शशीकांत अग्रवाल
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