Thursday, May 19, 2011

{ ३६ } मेघा बरसो रे






बरसो रे..

बरसो रे..

मेघा बरसो रे,

मेघा बरसो रे |


झूम - झूम के बरसो,

घूम - घूम के बरसो,

मेघा बरसो रे,

मेघा बरसो रे |


अम्बर प्यासा,

धरती सूखी,

सूखी नदिया,

सूखे झरने सारे,

वन - उपवन में आग लगी है,

झुलसा है गिरिराज हिमालय,

औ' झुलसे अंगी सारे,

मेघा बरसो रे,

मेघा बरसो रे |


चिडी, चिरैय्या औ" गौरय्या,

काग, कुरच बेहाल घूमते,

मुर्गाबी, हंस औ' सारस,

आसमान हैं तकते,


आओ मेघा आओ,

सबकी प्यास बुझाओ,

बरसो मेघा बरसो,

झूम - झूम के बरसो,

मेघा बरसो रे,

मेघा बरसो रे ||



................................................................. गोपाल कृष्ण शुक्ल



1 comment:

  1. वाह !गोपाल भईया !!इस तपती गर्मी में आपके शब्दों के मेघ ने भावों की जो बारिश की है पढ़कर मन भीग गया व आतंरिक सुख महसूस किया.
    हार्दिक धन्यवाद.आपका !!

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