बरसो रे..
बरसो रे..
मेघा बरसो रे,
मेघा बरसो रे |
झूम - झूम के बरसो,
घूम - घूम के बरसो,
मेघा बरसो रे,
मेघा बरसो रे |
अम्बर प्यासा,
धरती सूखी,
सूखी नदिया,
सूखे झरने सारे,
वन - उपवन में आग लगी है,
झुलसा है गिरिराज हिमालय,
औ' झुलसे अंगी सारे,
मेघा बरसो रे,
मेघा बरसो रे |
चिडी, चिरैय्या औ" गौरय्या,
काग, कुरच बेहाल घूमते,
मुर्गाबी, हंस औ' सारस,
आसमान हैं तकते,
आओ मेघा आओ,
सबकी प्यास बुझाओ,
बरसो मेघा बरसो,
झूम - झूम के बरसो,
मेघा बरसो रे,
मेघा बरसो रे ||
................................................................. गोपाल कृष्ण शुक्ल
वाह !गोपाल भईया !!इस तपती गर्मी में आपके शब्दों के मेघ ने भावों की जो बारिश की है पढ़कर मन भीग गया व आतंरिक सुख महसूस किया.
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद.आपका !!