इत्तेफ़ाकन नजर भर देखा उसको, तो फ़िर से जवानी आ गयी,
दूर हुई मन की उदासी, दिल खुशगवार, फ़िर से रवानी आ गयी।
मै बीमारे - फ़िराक, मायूस - दिल, अब तक रहा खल्वतगुज़ीं,
देख लताफ़त दूर हुआ तश्नाचश्म, लौट के जिन्दगानी आ गयी।
लब गुनगुना रहे, दिल के साज बज उठे, मन-मयूर नाच उठा,
देखा उसके चेहरे का नूर, याद हमको पुरानी कहानी आ गयी।
अब मुझे मैकदे से क्या मतलब, न दौरे-जाम की ही जरूरत है,
दिल को है सुकूँ, वापस मेरी मोहब्बत, शामे-मस्तानी आ गयी।
आँखॊ को ख्वाब दिखाले वाली, रातॊं की नीदों को चुराने वाली,
खुश्बू से दीवाना बनाने वाली, मेरा दिलबर, यारा-जानी आ गयी।
....................................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
१- बीमारे-फ़िराक = वियोगी
२- खल्वतगुजीं = एकान्तवासी
३- लताफ़त = नजाकत
४- तशनाचश्म = आँखों की प्यास
No comments:
Post a Comment