इन हवाओं को क्या बदगुमानी हुई,
ज़िन्दगी कश्मकश की कहानी हुई।
फ़िर से चन्दन बनों ने रचीं साजिशें,
हाथ दावानलों के बेबस जवानी हुई।
फ़ासलों की दुआ हम अभी भूले नही,
अब वो नजदीकियाँ सब पुरानी हुई।
अब तो भडकेंगे क्या खाक ही खाक हैं,
आओ और दो हवा बडी मेहरबानी हुई।
हम तो बदनाम मौसम की सौगात हैं,
दर्द, पीडा, घुटन ही अब निशानी हुई।
....................................................... गोपल कृष्ण शुक्ल
मेहरबानी हुई वाला शेर फिर से देखना. कुछ शेर बहुत अच्छे हैं. बधाई.--शतदल
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