Friday, February 25, 2011

{ १७ } ...... मेरे साथ हैं





मेरी बेचैनी, मेरी उलझन, मेरी उदासी सब मेरे साथ हैं
बिछडे लम्हे, गुजरी यादों की धुँधली तस्वीरें मेरे साथ हैं।

शहर-गलियाँ-राहे-चौराहे हैं मन्दिर-मस्जिद-गुरुद्वारे हैं
भीड है, आमदोरफ़्त है, पर मेरी वीरानियाँ मेरे साथ हैं।

मैं खडा हूँ किस दो राहे पे, सितारों से आगे मंजिल मेरी
बेदम हिम्मत, टूटा परचम, पस्त हौसले मेरे साथ हैं।

दिल की बातें बोल पाना मेरे लिये कब है मुमकिन रहा
उजडे ख्वाब, बेबस खामोंशियाँ-तनहाइयाँ मेरे साथ है।

किसी को क्या कहूँ, गुनहगार हूँ मैं, गुनाह किये बहुत
खुशियाँ लुटी चौराहों पर, अब रुसवाइयाँ मेरे साथ हैं।

ज़िन्दगी के भँवर में उलझे, अब सुलझना मुश्किल है
दूर तक दिखता सैलाब, मेरी मजबूरियाँ मेरे साथ हैं।


............................................................ गोपाल कृष्ण शुक्ल


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