मुस्कुराये एक जमाना हो गया
गुजरे लम्हों का फ़साना हो गया।
याद कहती है वह वहीं पर हैं खडे
क्या नया था क्या पुराना हो गया।
बात जो अल्फ़ाज़ को छूती न थी
दर्द दिल का पाकर तराना हो गया।
एक का ही दिल लूटने आया था जो
हर शख्स उसका निशाना हो गया।
........................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
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