पाँखुरी
Saturday, October 15, 2022
{३७५ } कल का इंतजार
न जाने कितने कल
आ कर बीत गए
और कितने ही आज
जो वर्तमान थे
वो सारे कल में बदल गए
पर मैं
आज भी न जाने
किस कल के इन्तजार में
अपने वर्तमान को
आज से कल में
बदलने को आतुर हूँ
यह सिलसिला निरंतर
चलता ही रहेगा।
चलता ही रहेगा।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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