Thursday, December 8, 2022

{४११ } आ लौट चलें फिर उन उजालों की ओर




आ लौट चलें फिर उन उजालों की ओर 
उन जवाबों के लिए उन सवालों की ओर। 

वो गली राह देखती होगी अभी भी हमारी 
उस राह से दूर रह के बीते सालों की ओर। 

टूटे ख्वाबों से अभी भी उलझा बैठा होगा 
मेरी नादान मोहब्बत के खयालों की ओर। 

रेशमी छुअन भी होगी फिर से ज़र्रे-ज़र्रे में 
ताजी हवा आएगी फिर मतवालों की ओर। 

पतवार हौसलों की तुम जरा थाम के चलो 
रकाबत में हूँ ले चलो मुझे हमालों की ओर। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 


रकाबत = प्रेम में प्रतिद्वंदी 
हमाल = सहयोगी 

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