मेरी भी अजब कहानी।
जैसे हो पीर पुरानी।।
मैं चला निरंतर अन्तर में विश्वास भर
सूखी-सूखी आँखों में अतृप्त प्यास भर
न पहुँच सका तुझ तक कभी भी
छोड़े पथ पर चरण निशानी।
मेरी भी अजब कहानी।।
अर्थ क्या शब्द ही रहे अनमने
खिंचे-खिंचे से और रहे तने-तने
मीठे-मीठे बोलों मे खारे-खारे से
वेदना अश्रु बने पानी-पानी।
मेरी भी अजब कहानी।।
उजियारी रातों मे अंधियारा जैसे
छाई काली घटा छँटेगी कैसे
दीन दृगों में आँसू ही आँसू
कौन सुने करुणा की वाणी।
मेरी भी अजब कहानी।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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