Monday, October 17, 2022

{३८० } तुम्हारा वस्ल ही मरहम है





बड़ा ही वीरान मौसम है 
आँख भी हमारी नम है। 

कभी मिलने चले आओ 
हर जानिब तेरा ही ग़म है। 

तुम्हें इल्म है मेरे दिल का 
तुम्हारा वस्ल ही मरहम है। 

अँधेरी रात औ' तन्हा दिल 
दिए की लौ भी मद्धम है। 

यूँ न रूठ कर तुम जाओ 
ग़म वैसे भी नहीं कम हैं। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

2 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 19 अक्टूबर 2022 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete