दूरियाँ सब मिटाओ, मजा आ जाए।
किसी को छोटा या बड़ा समझो नहीं
खूब रँगो और रँगाओ, मजा आ जाए।
रँग में ऐसे रँग को जमकर मिलाना
भूले अपनो-पराओ, मजा आ जाए।
रँग-गुलाल डालो या न डालो, मगर
जरा सा मुस्कुराओ, मजा आ जाए।
लाख जतन करूँ मगर उतर न सके
रँग इश्क का चढ़ाओ, मजा आ जाए।
.......................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
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