बस,
सुर कभी ऊँचे,
कभी मद्धिम होते रहते हैं।
सुर कैसा भी हो,
गीत नहीं रुकना चाहिये।
लय कैसी भी हो,
गीत नहीं रुकना चाहिये।
ताल कैसी भी हो,
गीत नहीं रुकना चाहिये।
ज़िन्दगी गीत है गाओ
और गाते जाओ,
ज़िन्दगी गीत है गुनगुनाओ
और गुनगुनाते जाओ।
ज़िन्दगी गीत है।
ज़िन्दगी गीत है॥
.................................. गोपाल कृष्ण शुक्ल
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