तनहाइयों में भी दिल कुछ गुनगुनाता है।
कोई दस्तक सी सुनाई दी बंद किवाड़ों पर
शायद कोई दिलजला है जो मुझे बुलाता है।
आँखों में आए बिना ही सपने गुजरते जाते
जो था हकीकत अब ख्वाब हुआ जाता है।
मिलने को आज भी मचलती हैं धडकने
दिल आज भी तेरे लिये ही रूठ जाता है।
आँखों से टपकते हैं आँसू यूँ ही अक्सर
तेरा अक्स हमे अब भी खूब रुलाता है।
................................................. गोपाल कृष्ण शुक्ल
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