होठों को मुस्कान देती,
स्वप्नों को परवान देती,
हौसलों को उड़ान देती,
मेरे दर्द में जो कराह देती,
मेरे माथे पर छलछला आए पसीने को
अपने नरम आँचल से पोंछ देती,
फ़िर प्यार से सर पर हाथ फ़ेर देती,
अपनी ममता भरी छाँव मे ले कर
जो दुनिया के हर दुख से दूर कर देती,
....... ढ़ूँढ़्ता हूँ आज उस आँचल को
जिससे बिछड़ चुका हूँ वर्षों पूर्व............
पर उस आँचल का नरम अहसास
आज भी मुझे दुलरा जाता है,
लगता है कि जैसे तू यहीं कहीं है
मेरे आस-पास.......................।
मेरी अम्मा.......... प्यारी अम्मा......॥
.............................. गोपाल कृष्ण शुक्ल
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