Saturday, January 10, 2015

{ २९८ } पर, प्रियतम तुम कभी न आये





पर, प्रियतम तुम कभी न आये।

स्मृति पट पर अब तक मैंनें
जाने कितने ही चित्र बनाये,
कितनी बार नयन के घन से
पीड़ा के अँकुर सरसाये।
पर, प्रियतम तुम कभी न आये।।१।।

मेरे उर की विकल वेदना
प्रियतम तुम समझ न पाये,
मेरे मौन रुदन की भाषा
सुन कर भी जान न पाये।
पर, प्रियतम तुम कभी न आये।।२।।

कितनी बार पपीहे के स्वर में
मैंनें विरह के गीत दोहराये,
कोई दिन गया न ऐसा जब
हमने आशा-दीप नहीं जलाये।
पर, प्रियतम तुम कभी न आये।।३।।

.................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल

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