ज़िन्दगी की राह में चलते-चलते
बहुत थक गयी लगती हो
थोड़ा सुस्ता लो
सपनों को फ़िर से सहेज लो
बिखरे अरमानों को समेट लो
बढ़ाओ फ़िर से अपने कदम
भर कर नई स्वाँस
क्योंकि___ साँझ घिरने में
अभी बहुत वक्त है बाकी।
अभी बहुत वक्त है बाकी।।
------------------------ गोपाल कृष्ण शुक्ल
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