परमात्मा ने मनुष्य को दिये हैं
कई रतन,
आत्मा, बुद्धि, तन और मन।
बुद्धि ने सिखलाया
जीवन जीने का ढ़ँग,
बुद्धि ने उपजाये
मनुष्य की विलासिता के साधन,
बुद्धि ने ही किये
अनेकानेक आविष्कार,
बुद्धि ने ही खोजा
दूसरों पर करना अधिकार,
मनुष्य को लगता है कि जैसे
उसने पा लिया है सारा संसार।
परिणाम में मनुष्य की
प्रखर हुई बुद्धि,
पुष्ट हुआ तन,
प्रमुदित हुआ मन,
परन्तु
खोज की इस होड़ में
मनुष्य की आत्मा
कहीं हो गयी दफ़न।
मनुष्य की आत्मा
कहीं हो गयी दफ़न।।
---------------------------- गोपाल कृष्ण शुक्ल
अत्यन्त हर्ष के साथ सूचित कर रही हूँ कि
ReplyDeleteआपकी इस बेहतरीन रचना की चर्चा शुक्रवार 09-08-2013 के .....मेरे लिए ईद का मतलब ग़ालिब का यह शेर होता है :चर्चा मंच 1332 .... पर भी होगी!
सादर...!
ReplyDeleteबुद्धि का पात्र निर्मल हो तो सही ज्ञान बुद्धि में टिके। निर्णय करने की शक्ति है बुद्धि आत्मा की। आत्मा का सर्वर है सर्च इंजन हैं। दासी है आत्मा की बुद्धि। फिल वक्त कुंडली मार बैठ गई है बुद्धि पर विकार संसिक्त संदूषित बुद्धि।
बढ़िया मंथन है इस रचना में। मंथन क्या निष्कर्ष ही है।
ReplyDeleteबढ़िया मंथन है इस रचना में। मंथन क्या निष्कर्ष ही है। इसीलिए खा गया है खुदा गंजे को नाखून न दे।
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