मैं परिमाण तुम्हारा हूँ
तुम मेरे परिमाण हो।
खोजा जीवन भर सुख और शान्ति
पर्वत-घाटी-शिखर-उपवन कान्ति
तुम परिणाम मे मिले प्राण हो
तुम मेरे परिमाण हो।।१।।
शारदीय सँध्या के स्वप्निल वातायन में
साँसों की वीणा पर प्राणॊं के गायन में
तुम मधुर - मोहिनी तान हो
तुम मेरे परिमाण हो।।२।।
गगन तक बिखरी चाँदनी ही चाँदनी
प्रणय का ज्वार हो रहा उन्मादिनी
तुम चपल रजनी की मादक मुस्कान हो
तुम मेरे परिमाण हो।।३।।
......................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
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