आया बसन्त
छाया बसन्त
प्रफ़ुल्लित मन-उच्छवास
मन-मुदित धरती-आकाश।।
अनुगुँजित हो उठा अन्तरमन
नर्तित है जन-जन, हर तन
बजे बाँसुरी स्वाँस-स्वाँस
प्रफ़ुल्लित मन-उच्छवास
मन-मुदित धरती-आकाश।।
आई अभिनन्दन की बेला
वन्दन, अर्चन की बेला
प्रति क्षण नर्तन और रास
प्रफ़ुल्लित मन-उच्छवास
मन-मुदित धरती-आकाश।।
प्रेमल पवन, सुरमई दिशायें
स्वप्निल नयन मुदित मुस्कायें
बिखरा चहुँ-दिश हास-परिहास
प्रफ़ुल्लित मन-उच्छवास
मन-मुदित धरती-आकाश।।
आया बसन्त
छाया बसन्त
प्रफ़ुल्लित मन-उच्छवास
मन-मुदित धरती-आकाश।।
------------------------------------ गोपाल कृष्ण शुक्ल
kyaa baat hain mastttttttttttttttttttt chhaya hain basant acharya shree
ReplyDeleteवाह क्या बात है---तन मन मे बासन्तिक राग, अविकल विकल तन मन मदन ताप।
ReplyDeleteमन वसंत,तन वसंत,अभिव्यक्ति वसंत मय .................
ReplyDeleteवासन्ती मधुरिमा से ओतप्रोत रचना.......
शुभकामनाएं