Wednesday, January 23, 2013

{ २३३ } ढल गयी प्यार की गुनगुनी धूप






जल रही है आग सी दिन-रात आँखों में
चुभता दर्दे-जीस्त का आघात आँखों में।

अजब सा मौन छा गया शुष्क अधरों पर
सिसक रही अनकही सी बात आँखों में।

किस्मत में लिखे हिज्र के दिन पर्वतों से
तडपते ही गुजर जाती हर रात आँखों में।

क्यों ढल गयी प्यार की वो गुनगुनी धूप
बार-बार उठते यही सवालात आँखों में।

अब गम की राहों में गुजरेगी ज़िन्दगी
सजा लीं ख्वाबों की सौगात आँखों में।


............................................. गोपाल कृष्ण शुक्ल

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