Wednesday, November 21, 2012

{ २१४ } प्यासा मन मयूर





जाने कैसा स्वप्न देख रहा है
ये प्यासा मन मयूर
नयनों में नयनों से झाँक रहा है
पर समझ न पाये
ये नयनों के छल-बल।

आशा भरे नयनों से
टटोल रहा है ये
उन पथरीले नयनों को।

उन पथरीले नयनों में
ढूँढ रहा है
अपने दर्द की परछाँईं
उन पथरीले नयनों में
ढूँढ रहा है
उनके हृदय की गहराई।

चुरा कर ले गये है
वो नयन सुख-चैन
विकल हो गया है मन
रो रहा है हृदय
पिघल रहा है दर्द।

पर वो निष्ठुर हृदय
दूर खडा मुस्कुरा रहा है
जाने क्यों फ़िर भी
लगता है जैसे
सपनों में वो आ रहा है।
उसका यह छल-बल
हृदय को भा रहा है।।


.................................. गोपाल कृष्ण शुक्ल


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