हम दीवानों की ऐसी हस्ती है
आज यहाँ हैं, कल वहाँ चले।
मस्ती का आलम साथ चला
हम धूल उडाते जहाँ चले।।
हम भला बुरा सब भूल चुके
नतमस्तक हो मुख मोड चले,
अभिशाप उठा कर माथे पर
वरदान दृगों से छोड चले।।
अब अपना और पराया क्या
आबाद रहें यहाँ रुकने वाले,
हम स्वयं बँधे थे और स्वयं ही
हम अपने बन्धन तोड चले।।
हम दीवानों की ऐसी हस्ती है
आज यहाँ हैं, कल वहाँ चले।।
------------------------- गोपाल कृष्ण शुक्ल
वाह ... बहुत ही बढिया।
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