आह ! सर्दियों की ये लम्बी रातें
हैं इश्क के लिये ये बेशुमार रातें।
माना हुस्न के बेहिसाब मजहब हैं
पर शैदाइयों की भी हैं लम्बी बातें।
जितना नूर था उन बीती रातों में
उतनी ही रोशन हैं आज की रातें।
इश्क में डूबे फ़िर न उभरेगा कभी
इश्क में करनी होती है हजार बातें।
हुश्न हो जब गैर के इश्क में मगन
उफ़्, तब हमारी होती हैं बेजार रातें।
.................................. गोपाल कृष्ण शुक्ल
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