ज़िन्दगी की जंग में इतनी जल्दी गया तू थक हार
पतझड तो पतझड है, भार हुई तुझे बसन्त बहार।
प्यार अर्पण किया जिस को उनसे तुझे क्या मिला
अनमोल ज़िन्दगी है तेरी, अब उस से ही कर प्यार।
संग-रेज़ों को हटा अब, खारजारों को तू उखाड फ़ेंक
हो मंजिल आसान, रहगुजर कुछ ऐसी कर तैयार।
रात होने को है पर मंजिल अभी है दूर, बहुत दूर
ओ मुसाफ़िर ! कारवाँ की अपने तेज कर रफ़्तार।
महफ़िल सजे, गमगीन माहौल सुर-साज में बदले
संगीतमय प्यार का इस ज़िन्दगी से कर इजहार।
..................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
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