मेरे जीवन का दृष्य
सामने मेरे खडा है ऐसे
जैसे कोई
आईना और अक्स ।
बाल अवस्था,
कटी जवानी,
हरी-भरी मनभावन
और धानी-धानी ।
अब पतझड में
हूँ तन्हा-तन्हा
खडा हुआ
बिन दाना-पानी ।
मन में लिये
मूक-विश्वास
जीवन-चक्र से
मुक्ति की आस ।।
................................ गोपाल कृष्ण शुक्ल
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