Monday, June 11, 2012

{ १८६ } मुक्ति की आस





मेरे जीवन का दृष्य
सामने मेरे खडा है ऐसे
जैसे कोई
आईना और अक्स ।


बाल अवस्था,
कटी जवानी,
हरी-भरी मनभावन
और धानी-धानी ।


अब पतझड में
हूँ तन्हा-तन्हा
खडा हुआ
बिन दाना-पानी ।


मन में लिये
मूक-विश्वास
जीवन-चक्र से
मुक्ति की आस ।।


................................ गोपाल कृष्ण शुक्ल


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