जहाँ हों खुशियाँ
गम भी हों बेशुमार,
कहें इसी को ज़िन्दगी,
यही ज़िन्दगी है।
यही ज़िन्दगी है।।
बुझे दीप को,
जो लौ जलाती रहे,
कहें इसी को रोशनी,
यही रोशनी है।
यही रोशनी है।।
सजा भी न दे वो,
और खता भी छुपाये,
कहें इसी को सादगी,
यही सादगी है।
यही सादगी है।।
रहे दूर सुख में,
मगर हो साथ दुख में,
कहें इसी को दोस्ती,
यही दोस्ती है।
यही दोस्ती है।।
सँग हो पिया के,
प्यास फ़िर भी हो बाकी,
कहें इसी को तिश्नगी,
यही तिश्नगी है।
यही तिश्नगी है।।
बिना कुछ भी कहे,
अनकही जो समझे,
कहें इसी को आशिकी,
यही आशिकी है।
यही आशिकी है।।
वो शान्ति में खुश,
वो शोर में खुश,
कहें इसी को बेदिली,
यही बेदिली है।
यही बेदिली है।।
न कुछ कर सके,
न कुछ कर ही पाये,
कहें इसी को बेबसी,
यही बेबसी है।
यही बेबसी है।।
..................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
No comments:
Post a Comment