Tuesday, April 17, 2012

{ १३४ } निभाते रहे हम





लबों पर शिकवे-गिले सजाते रहे हम
तुम्हारी वफ़ाओं को सहलाते रहे हम।

यकीनों की कश्ती भँवर में है फ़ँस गई
इसलिये दरिया में डगमगाते रहे हम।

दिल का आशियाँ रहा उजडा हुआ सा
उम्मीदों की महफ़िल सजाते रहे हम।

आँखों में सुलगते रहे उदासी के दीपक
दिल की तडप से उन्हे जलाते रहे हम।

अब नही आबाद हैं दिल में कोई ख्वाब
अपनी बरबादियों को निभाते रहे हम।


.......................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल


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