इन राहों में तलाश रहा हूँ
इंसान को.................
पर इंसान शायद यहाँ नहीं
इंसान तो
श्मशान या कब्रगाह में होंगे,
क्योंकि इंसान तो मर चुका है।
इन राहों पर सिर्फ़
गुनाह और हैवान
ही जिन्दा बचे हैं।
इनका ही कोलाहल
इस पूरे ब्रह्माण्ड को
प्रदूषित कर रहा है
और इंसान
हर दर पर
हर कदम पर
सिर्फ़ मर रहा है.
इंसान मर रहा है।।
...................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
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