कल हमने दिलबर की याद में कितनी ही शराब पी
आँखों मे तैरे नक्श, दिल में दर्द, होठों से शराब पी।
दिलरुबा भी गाफ़िल मुझसे, अपने भी ठुकरा गये
मैं हूँ दिल-शिकस्ता, इसलिये तनहा पी, शराब पी।
साथ नही है हमसफ़र तो क्या करें सैर गुलशन की
दूर हो अगर मयखाना, घर पे बैठ कर पी, शराब पी।
एक लम्बी उम्र बसर की है हमने गमे-यार के साथ
तुमको दो ही दिन भारी जुदाई के, आ पी, शराब पी।
............................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
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