झील से नयन तुम्हारे।
झील से नयन तुम्हारे।।
झील से नही हैं ये
प्रपात से नही हैं ये
सिंधु से नहीं हैं ये
ज्वार से नहीं हैं ये
झील से नयन तुम्हारे।
झील से नयन तुम्हारे।।
नदी से नही हैं ये
धार से नहीं हैं ये
कूल से नहीं हैं ये
ताल से नहीं हैं ये
झील से नयन तुम्हारे।
झील से नयन तुम्हारे।।
होता है अचरज इन पर
ये छलकें केवल मुझ पर
प्रेम-वेग के अश्रु भर कर
डूब गया मैं इनके तट पर
झील से नयन तुम्हारे।
झील से नयन तुम्हारे।।
.................................. गोपाल कृष्ण शुक्ल
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