पहले मुझसे था प्यार अब और किसी का है
मुझको आज भी इन्तजार तेरी रोशनी का है।
गुलों के बदले रहगुजर में ये खार बिछा दिये
क्यों माने कि ये काम किसी अजनबी का है।
हाल अपना क्या बताऊँ, खुद देख लें आप ही
मेरे चेहरे पर लिखा हाल मेरी बेबसी का है।
क्या लोग थे और अब क्या से क्या हो गये
कैसे यकीं करें अन नही यकीं किसी का है।
बेवफ़ाई और हुस्न ने इश्क को दी है मात
ये किस्सा भी बेजोबानों की जुबानी का है।
सभी का ही तो हक है बराबर खुदाई पर
उसे देख के लगता है कि खुदा उसी का है।
.......................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
Bahut sundar likha hai aapne ...
ReplyDelete