स्वप्न दर्शित आस को विश्वास देकर
मनुज को एकत्व का वरदान दे दो ॥
प्यार से आबध्द कर उन्मन मनों को
अहम की भ्रान्ति को सत्वर मिटा कर
भाव मे सदभाव को आवास देकर
मनुज को देवत्व का संधान दे दो ।
अहम की भ्रान्ति को सत्वर मिटा कर
भाव मे सदभाव को आवास देकर
मनुज को देवत्व का संधान दे दो ।
मरुथलों को भुवन-मोहन हास देकर
चेतना के पुंज को सम सा रिझाकर
सुमन को शाश्वत ललित मधुमास देकर
दिव्य तन-मन को चिरंतन ग्यान दे दो ।
प्रीति के स्वर्ग को लाकर धरापर
विषमता की भूमि पर अमृत लुटाकर
कल्प को संकल्प सा अपना बनाकर
व्यक्ति को नव-सृष्टि का अभियान दे दो।
स्वप्न दर्शित आस को विश्वास देकर
मनुज को एकत्व का वरदान दे दो ॥
........................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
मनोहारी भाव,सुंदर भाषा
ReplyDeleteऔर छंदमय ... गेयता का बोध...
बधाई आपको गोपाल जी...
और आभार इतनी सुंदर रचना पढवाने के लियें..