कुछ भी मुश्किल नही, मगर आदमी होना मुशकिल है,
सिर्फ़ चार दिन की ज़िन्दगी, पर जीना बहुत मुश्किल है।
कानों पर भरोसा नही, दुनिया को अपनी आँखों से देखो,
क्योंकि कौन भला है कौन है बुरा, ये कहना मुश्किल है।
जग में छाया अँधेरा देख रहा है, उजाले की राह कब से,
खो गई कहीं इस दुनिया से रोशिनी, ये कैसी मुश्किल है।
है नींव मजबूत भरोसा भी है उसपर, सो इमारत खड़ी है,
मत बहको, खिसकी जो एक ईंट तो संभलना मुश्किल है।
मतलबी दुनिया को यारों मारो ठोकर तो दुनिया साथ चले,
वरना इस मतलबी दुनिया में सिर्फ़ मुश्किल ही मुश्किल है।
हम अपने लिये क्या और कैसे कहें, आप ही कुछ कहेंगे,
ये शायर के खयाल हैं, इसपे कुछ कहना कहाँ मुश्किल है।
……………………………………………… गोपाल कृष्ण शुक्ल
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