गीत मैं कैसे सुनाऊँ,
स्वप्न तो देखे बहुत,
आकार उनको कैसे दिलाऊँ,
गीत मैं कैसे सुनाऊँ।
लेखनी रूठी हुई,
शब्द, अर्थ को खो चुके,
भाव मन के कैसे सजाऊँ,
गीत मैं कैसे सुनाऊँ।
तूलिका टूटी पडी,
रंग सारे सज न पाये,
चित्र मैं कैसे बनाऊँ,
गीत मैं कैसे सुनाऊँ।
रागिनी रूठी हुई,
ताल भी साथी नहीं,
साज मैं कैसे बजाऊँ,
गीत मैं कैसे सुनाऊँ।
साँझ अब ढलने लगी,
चाँद आने को मचलता,
रमणी बिन रैन बिताऊँ,
गीत मैं कैसे सुनाऊँ।
................................. गोपाल कृष्ण शुक्ल
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